Lonia Chauhan Rajput

The Lonia Chauhan  are a Hindu Rajput caste, found in the state of Uttar Pradesh in India. Lonia  chauhan is a branch of lonia .They were traditionally salt makers, and also known as Nuvra, Sambhri, Sambhri Chauhan and Jhumana Parmar.Originally, the Loniya chauhan  rajput belong to Rajasthan  particularly in Ajmer, Pushkar, Luni, Pulera, Jhuman, Dausa, Bewar and Sambhar Ranthambore, Bundi, Kota and Udaipur . They were soldiers in the time of the Chauhan rulers of Ajmer. This community were migrated due to war between Auragjeb and Dsrashikoh in 1671 the son of  emperor  Shah Jahan . Aurangjeb had won the battle and ordered to beheaded all the Rajput who fight gainst  him.The thirteen Rajput  hide  themselves to save their lives from Mugals and becomes Lonia .Lonia is a occupational name . As  the traditional occupation of the community was making of salt  . They are now engaged in agriculture, and are a community  of  farmers having big & in some places moderate farmland. Some of them are also prosperous business people Their main concentrations are in the districts LukhnowGhazipurJaunpur,Mirzapur, Allahabad, PratapgarhVaranasi AzamgarhMauSultanpurAmethiChandauliBallia, Gorakhpur, Gonda. Bahraich, basti, Sitapur, khiri, Faijabad,  Apart from Utter Pradesh, Lonia chauhan Rajput caste is also found in Vindhya region of Madhya Pradesh in the district of Rewa, Satna,katani Shahdol ,Sidhi and Gwalior Muraina, Indore . In Punjab they are known as Loniwal, Dhariwal Janjuva,Rajwar, Chauhan,Bais and Lunawat..In India, community are Hindu community a huge population of Lonia chauhan Rajput  still exists in the Uttar Pradesh Districts of India., and worship Kuldevi such as Shakumbhari devi, Assapura devi, They still practice bali pratha (Sacrifice Goat & Bull)  which they offer to their kuldevi. The lonia  rajput have a caste association, the Rajput Maryada Sabha, head quartered in Kanpur. In 1883 people of this community has started Akhil bhartiya Shree Rajput Dharm pracharniya Mahasabha under the leadership of Thakur Lalamathura Prasad Singh and they have found their lost glory after some time they have change the name of this Mahasabha to Shree Rajput Heetkarni Mahasabha.In 1984 Shree Rajput Heetkarni Mahasabha merger in Akhail Bharti Kshtariya Mahasabha at Pratapgarh, Uttar Pradesh. Now they are known as Chauhan rajput of Eastern Uttar Pradesh.

LONIA RAJPUT / VISTHAPIT RAJPUT

ईतिहास मंथन से निकला नवनित….”चौहान” शब्द की उत्पत्ति,व्युत्पत्ति,शब्दार्थ एवम भेदार्थ….साभार आझादी के बाद नई सामाजिक व्यवस्था और आजके बदलते परिवेश मे कुछ क्षेत्रों को छोड़कर सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रुपसे दूसरे क्षत्रियो से पिछडे “चौहान” नामसे जानेजान वाले क्षत्रिय समूह मे वैचारिक अंधकार की स्थिति है।अपने-अपने तरीकोंसे इस समाज के उथ्थान के इच्छुक कर्मठ एवम मौकापरस्त दोनो प्रकार के नेता समाज को संगठित करनेके प्रयास मे लगे है। इस कारण चौहान समाज “धुतराष्ट्र” की तरह उचित निर्णय लेनेमे कठिनाई का अनुभव कर रहा है। क्या कारण और परिस्थितियाँ थी मौजूदा हालत के लिय जिम्मेदार ? चलो संक्षिप्त रुपसे देखते है।
 
1) चौहान समुदाय के अधिकतर लोग अपने पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास से ठोसरूपसे अनजान है। एकमात्र “पृथ्वीराज चौहान” से अपने आपको जोड़कर देखते है। जबकी ईस बहादुर और देशभक्ति से भरेे क्षत्रियोने 800 से 1192 के काल मे देश को मुस्लिम आक्रमण से बचाने के लिए अपने और दुश्मनो के रक्तसे युध्घ-भुमि को लाल कर दीया। पर इस्लाम को भारत मे प्रवेश करनेसे रोके रखा।
2) यह बात से अनभिज्ञ है की ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण कभी उत्तर-पश्चिमी भारत के शासक रहे एवम अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान की अजेय सेना का हिस्सा रहे 13-14 राजवंशो के क्षत्रिय जिसमे सभी अग्निवंशी.चंन्द्रवंशी,नागवंशी एवम कुछ सुर्यवंशी एवम लडाकु आदीवासी क्षत्रिय जातियाँ सामिल थी।
महान चौहान सेनानायक “विग्रहराज चतुर्थ” तथा बादमे महान सम्राट “पृथ्वीराज चौहान” के नेतृत्व मे इस राजपूत समूह ने तकरीबन सारे उतर-पश्चिमी क्षेत्रीय राजवंशो पर विजय पाई।इस प्रक्रिया मे कुछ मित्र बने पर ज्यादातर दुश्मन।
3) 1192 मे मुस्लिम आक्रमण कारियो से तराइन के युध्घमे पृथ्वीराज चौहान की पराजय तक ये 13-14 वंशो के क्षत्रिय लगातार युध्घ करते रहे और संख्या बलम क्षीण होते रहे। जिसकारण वे अपना क्षेत्रीय राजकीय आधार स्थापित करने मे असफल रहे।
4) 1193 के बाद और औरंगजेब के शासन काल तक ईनको जडमूडसे मिटाने के अवरित प्रयास चलते रहे। ये स्वाभिमानी पर कमनशीब क्षत्रिय समुह अपने अस्तित्व की लडाइ लडते रहे। ईन्हे उस विपत्तिकाल मे स्थानीय क्षेत्रीय राजपुतो का तनिक भी सहकार नही मिला,जो स्वाभाविक था।
5) अपनी अस्मिता एवम रक्त की शुद्धता को बचान का एक ही उपाय था। 13-14 वंशो के तकरीबन 98 शाखाओं के क्षत्रिय एकजुट हुए। कमजोर मालि हालत एवम स्थानीय क्षत्रियो दवारा भेदभाव को कारण उन्होंने नया सामाजिक ढाँचा विकसित किया। चूँकि वे भिन्न-भिन्न राजवंशो के होनेके कारण रक्त की शुद्धता का हल निकल गया।
6) क्षेत्रीय आधार एवम सत्ता के अभाव मे “चौहान” समुह के क्षत्रिय मजबूत सामाजिक संगठन तथा लडाकु प्रकृति व कीसि भी परिस्थति का सामना करने की अदभूत क्ृमता के बलबूते पर अपना अस्तित्व बचाने मे सफल रहे।
7) अंग्रेजी शासन कालमे चौहान क्षत्रिय नमक बनाने के,तथा रोड-रास्ते,नहरे बनाने के ठेके लेकर और मजदूरों से काम करवाते थे। 1931-38 की जनगणना से पूर्व उनके पाँस नील,नमक,शोरा बनाने के ही सिर्फ 5 लाख परमिट थे। चौहान राजपूत तब ठेकेदार,उत्पादक और व्यापारी की भूमिका मे थे। वे मूलत: ऱाजस्थान मरुभूमि के “लोनी”,”सांभर” और “ओशिया” जैसे नमक क्षेत्रों के मूल निवासी और शासक थे।तब वे सुखी और संपन्न थे।तभी दो ऐतिहासिक घटनाएँ घटी।
 
1..अंग्रेज सरकारने नमक बनानेके 5 लाख परवाने रद कर दीए। जिसके कारण चौहान क्षत्रियो ने कडा विरोध किया। पर एक न चली और खाने को मोहताज हो गए।मजबूरन दूसरे जमीदारो,बडे किशानो और ठेकेदारों के यहाँ मजदूरी करने को बाध्य होना पडा। कडी धूपमे मजदूरी एवम पोषक आहार की कमी के कारण ये दुर्भागी क्षत्रिय समूह कमजोर और श्यामवर्ण होता गया .
 
2.. दूसरी धटना 1931-38 की जनगणना मे ईन्हे ईनके मुल निवास, जो राजस्थान के लोनी नदी जो कुमारिका है व दरिया को नही मिलती पर रेगिस्तान के ३००-४०० वर्ग की.मी.क्षेत्र में फैलकर ग्रीष्म सिझन में विशाल कुदरती नमक क्षेत्र के होने के आधार पर क्षेत्रीय पहचान “लोनियाँ- चौहान” के रुपमें दर्ज किया गया।
10) अंग्रेजी शासन मे चौहान राजपूतो मे मुख्य चार श्रेणीयाँ थी।
 
1,ऱाजस्थान,मालवा,म.प्र,पश्चिमी उ.प्र. बूँदी,भदावर,मैनपुरी,इटावा,रायबरेली,पुराने प्रतापगढ़ क्षेत्र और किन्ही क्षेत्रों के राजा,जमीदार,जिलादार, तालुकदार या संगठित बच्छगोत्री, वत्स एवम राजकुमार चौहान..
 
2..मुल ऱाजस्थान के लोनी,सांभर और ओशिया जैसे नमक क्षेत्रों के पूर्व शासक सांभरी,सोनीगरा,देवडा, खिंची,मोहिल.आदी शाखाओं के “लोनियाँ – चौहान” के नामसे जानेजाने वाले चौहान राजपूत.नोनिया,खारोला,ऩोनहार  क्षत्रिय हे।
 
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